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Showing posts from March, 2017

प्रधानमंत्री जन औषधि योजना

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केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत आपको सस्ती दवाओं की सुविधा मिल सकती है। इसका एक मात्र उद्देश्य यह है कि कम कीमत पर गरीब और सामान्य परिवार के लोगो को दवा पहुचाना। साथ ही यह दवा के क्षेत्र में व्यापार करने वालो के लिए कम खर्च पर एक अच्छी योजना भी है । हम आपसे यह कहे कि बाजार में मेडिकल स्टोर पर बिकने वाली दवाइयों पर साठ से सत्तर फीसदी के कम कीमत पर आपको दवा मिल सकती है। तो आप जरूर जाना चाहेगें यह कैसे हो सकता है। अहमदाबाद कि रहने वाली हितेशरि कि जन औषधि केंद्र का दुकान है और यह लगभग एक वर्ष से अपना यह स्टोर चला रही है। वे कहती है कि ग्राहक काफी खुश है। वे सामने से आकर दवा के गुणवक्ता के बारे में बताते है कि यहाँ कि दवा खाने से मेरा रोग खत्म हो गया है। वही वह यह भी कहती है कि जो मरीज एक दवा लेकर जाता है वह दुबारा भी आता है। दवा भी समय पर हमें मिल जाती है। वही यहाँ दवा लेने वाले ग्राहक सरकार के इस योजन काफी खुश है और कहते है की हमें कम दाम पर अच्छी दवा मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह बहुत अच्छा कदम उठाया है। हम काफी ...

चलो फिर याद करे उन वीरो को जो वतन के वास्ते हस्ते हस्ते दफन हो गए .

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१. भगत सिंह भगत सिंह का जन्म २७ सितंबर १९०७ को हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था। अमृतसर में १३ अप्रैल १९१९ को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। काकोरी काण्ड में राम प्रसाद बिसमिलह  सहित ४ क्रान्तिकारियों को फाँसी व १६ अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन  से जुड गये और उसेएक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक  एसोसिएशन  इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर १७ दिसम्बर १९२८ को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे० पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलक...

स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज का जीवन परिचय .

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    जन्म और बाल्यकाल सिन्धु नदी के तट पर स्थित सिंध प्रदेश (पाकिस्तान) के हैदराबाद जिल्हे के महराब चन्दाइ नामक गांव में ब्रह्म क्षत्रिय कुल में श्री टोपनदास गंगाराम जी का जनम हुवा था। वे गांव के सरपंच थे। साधू संतो के लिए उनके दिल में सम्मान था। उनकी दो पुत्रियाँ थी पर उनको पुत्र नही था। एक बार पुत्र इच्छा से प्रेरित होकर श्री टोपनदास अपने कुलगुरु श्री रतन भगत के दर्शन के लिए पास के गांव तल्हार में गए और वहां पर हाथ जोड़कर अपनी पुत्र इच्छा कुलगुरु को बताई. कुल गुरु ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हुवे कहा :- " तुम्हे १२ महीने के भीतर पुत्र होगा जो केवल तुम्हारे कुल का ही नही परन्तु पुरे ब्रह्म क्षत्रिय समाज का नाम रोशन करेगा. जब बालक समझने योग्य हो जाए तब मुझे सोंप देना" संत के आशीर्वाद से, सिन्धी पंचाग के अनुसार संवत १९३७ के २३ फाल्गुन के शुभ दिवस पर टोपनदास के घर उनकी धर्मपत्नी हेमीबाई के कोख से एक सुपुत्र का जनम हुवा. जनम कुंडली के अनुसार बालक का नाम लीलाराम रखा गया। पाँच वर्ष की अबोध अवस्था में ही सिर पर से माता का साया चला गया, तब चाचा और चाची...