मनमे की गहराई में बसी हुई छोटी - बड़ी शंकाओ का समाधान सत्संग ...



आज कई साधक भाई बहनों के मन में अजीबसे सवालों चल होगे , आपके मन शांति होगी तो आपका पड़ोसी व्यर्थ के तर्क खड़े कर परेशान कर रहा होगा . जैसे की ....

३ साल से ज्यादा समय हो गया अभी तक कोई सुभ संदेश नहीं   ??
बापूजी तो ब्रह्ज्ञानी महापुरुष हे फिर भी ऐसा क्यों      ??
कई नेता बापूजी के पास आते थे आज क्यों नहीं आते     ??
बापूजी कोई चमत्कार क्यों नहीं करते  ???? . etc etc ...

इश प्रकार के सवालों हमारे मनमे उठाना या पूछे जाना स्वाभाविक हे ,और कई साधक भाई सत्संग सुमिरन में कम पर व्यर्थ के तर्क में ज्यादा घिरे हुवे हे . पर हमें इन सारे अर्थहिन् सवालों के जवाब न्यूज़ , व्हाट्सउप , फेसबुक के लाइव अपडेट से नहीं मिलेगे . इसके लिए जरुरी हे बापूजी , सुरेशबापजी के सत्संग के श्रवण की , बापूजी ने इन सारे सवालों के उत्तर दिए हुवे ही हे . बस हमें अपनी समज़ विकसित करनी हे जवाब अपने आप मिल जायेगा . चलो इन सारे सवालों को रामायण के द्रष्टान्त से समज़ते जो बापूजी अपने सत्संग में सुनाया करते थे ..

रामायण में भी दो ऐसे प्रसंग आते हे जिनमे भगवान श्रीराम पर संदेह किया जाता हे ,एक तो सती (पार्वतीजी ) और दुशरे गरूडजी , वो भी सोचते थे  " क्या ये विष्णु अवतार श्रीराम हे , ये तो कोई कामी पुरुष लग रहा हे जो अपनी पत्नी खो गय और पेड़ पोधो से पूछ रहा और दर डर ठोकरे खा रहे  हे "??? . " क्या भगवान खुद कभी नागपाश में बंध सकते हे , ये भगवान कैसे हो सकते हे "??? . ऐसे कई प्रकार के तर्क गरुड़जी और सती के मनमे उठे पर गरूडजी ने शिवजी और नारदजी की बात मान ली और कागभुसढि द्वारा भगवत सुमिरन कर अपना तर्क दूर कर दिया . पर सतीने तर्क को प्रधानता दी और संत्संग , पति के वचनों की अवज्ञा की और प्रभु श्रीराम की परीक्षा की , परिणाम ये आया शिवजी ने सती का त्याग किया . बाद में सती ने की हुई गलती के प्रश्याताप के लिए अपना सरीर त्याग दिया .

हमें भी गरूडजी की तरह जब भी कोई मन में तर्क हो तो बापूजी ,सुरेशानंदके सत्संग श्रवण में लग जाना चाहिए , कही  तर्क - वितर्क के चक्कर में आकर ऐसा कुश कार्य न कर बेठे की बापूजी के अंतर-आत्म को ठेस पहुचे .




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