सफलता के ७ सूत्र
किसी भाई के घर में कींचर की शीशी गिरकर टूट गइ , भाई ने पत्नी से आवाज लगाई " सुनती हो जल्दी से किचन से सूरी लेकर आवो " पत्नी सोचने लगी कींचर की शीशी गिर गई सूरी क्यों मंगवा रहा हे , उस भाईसाब ने तो चाकू से अपने दोनों हाथो पे घाव किये और गिरा हुवा कींचर घावभरे हाथ से पोछने लगा . पत्नी बोली ये क्या कर रहे हो , जनाब बोले " कींचर का सदुपयोग कर रहा हु , ताकि वो व्यर्थ न जाये " - पर क्यों अपना सार गवा रहा हे , बांवरे अशार को सँभालने के लिए सार गवा रहा हे ये अज्ञता हे .
सफलता के ७ सूत्र :
१. आत्मविश्वास : देखा जाता हे की लोग किसी भी कार्य करने में सक्षम होते हे परंतु स्वयं की क्षमता पर विश्वास नहीं होता ,ये मेरी केपेसिटी हे , ये मेरी क्षमता हे , खुद की क्षमता पर विश्वास नहीं होता इसलिए असफल हो जाते हे . ये काम होकर रहेगा ॐ ॐ दो पांच मिनिट ओमकार का गुंजन करो आत्मबल बढाओ , आत्मविश्वास की कमी से व्यक्ति को असफलता मिलती हे . उदा: एक विद्याथी के परीक्षा में रेंक न आने पुछा गया आप हर बार रेंक लाते इसबार क्यों नहीं आया . विद्यार्थी ने कहा "इसबार में पढ़ते समय पढाई से ज्यादा परिणाम का ज्यादा चिंतन करता था ".
२. पुरुषार्थ : भाग्य के व्यापक आकर को देखकर सामान्य लोगो की बात ही क्या कहे कभी कभी विद और वरिष्ठ जन भी भाग्य की बलसाली होने की गवाही देने लग जाते हे ,'भाग्य बड़ा बलवान हे ', 'भाग्य में होगा तो पढाई करेगे ','नसीब होगा तो पैसे मिलेगे ', वगेरे .. बुध्धि के सभी तर्क, ज्योतिष की सभी गणनाए , ग्रह का समूचा दलबल भाग्य के पक्ष में खड़ा दिखाई देता हे . नशीब होगा सो होगा क्या करे भाई भाग्य ही ऐसा हे .
नितिशास्त्र में आया हे " उधोगे नास्ति दरिद्रं " पुरुषार्थी उद्यमी कभी दरिद्र नहीं होता . अत्मवेता वेता महापुरुष वो भाग्य की शक्ति को एक सीमा तक ही स्वीकारते क्योकि वे महापुरुष जानते हे की पुरुषार्थ आत्म की चेतना शक्ति हे जबकि भाग्य तो कर्मो का समुदाय हे . पुरुषार्थ का एक पल भी कई जन्म की दुर्बलताओ पर भरी पड़ता हे . " फोलादी हे बांहे हम चाहे तो खड़ी कर सकते हे चट्टानी राहे " , भाग्य को अपना इचानुवर्ती बनावो भाग्य के भरोशे आलसी मत बनो .
३. स्वयं की तुलना दुसरो से मत करो : प्रकृति ने सबको एक जैसा नहीं बनाया , हम सबका एक जैसा चहरा हे क्या ?, स्वभाव एक जैसा हे क्या ?, विचार एक जैसे हे क्या ?, .. इसने इतना कमाया ... ये मेरे साथ ही पढता था ये कितना धनवान हो गया और में तो अभीतक कुश भी नहीं कमाया . अपनी तुलना कभी भी दुशरो से मत करो जब आदमी अपनी तुलना दुशरो से करता हे तो इर्षा होती हे जो की विकार हे , जब भी आप अपनी तुलना दुशरो से करोगे इर्षा होगी ही , और इर्षा से हमारा कीमती समय कीमती उर्जा वो चिंता चिंता में नष्ट हो जायेगा . जो शक्ति जो समय किसी अच्छे काम में लगाकर सफलता मिल सकती थी , पर व्यर्थ के चिंता में समय भी चला गया और शक्ति भी चली गई . इशलिये खूब सचेत रहो इर्षा आंतरिक कमजोरी हे .
४. मन की एकाग्रता : मन की एकाग्रता हमें लक्ष प्राप्ति के लिए आबोध करती हे , अपने मन इन्द्रियों की एकाग्रता के धन से संपन्न रहो और उसमे वाणी का मौन बहुत मदद करेगा , मन की एकाग्रता दुर्गम कार्य को सुगम कर देता हे .
५ . उचा लक्ष : आप देखो कई बच्चे कोई इंजिनियर बनना चाहता हे , तो कोई डॉक्टर , वकील , बिज़नेशमेन बनना चाहता हे पर ध्यान रखे ये लक्ष उचा तो हे पर सोचने की बात ये हे की क्या ये लक्ष स्थिर हे . हम उसपे अडिग हे .
६. इश्वर और गुरु पर अटल भरोषा : माना की आपने पुरुषार्थ किया , आत्मविश्वास हे , स्वयं की तुलना दुशरो से नहीं करते , नाम एकाग्र भी हे और लक्ष भी उचा हे , चलो मन लो की सफलता के पांच सूत्र आपके पाश हे पर ये छठा गुरु व इश्वर पर अटल भरोषा न आया तो सभी प्रयत्न विफल होगे . और विफलता आने के बाद भी गुरु व इश्वर पर भरोषा कायम रहा तो सफलता आपके पीछे पीछे न आये तो आपका जूता मेरा सर .
७ . सबकी सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाकर हंमेशा संतोषी रहना : मेरे द्वारा दुसरो की सेवा होगी , सेवा का उतकृस्ठ लक्ष रखोगे , जीवन के उचे मूल्य रखोगे , तो हमारे जीवन की गति को सही दिशा मिल जाएगी , वास्तविक सफलता मिल जाएगी , कर्जा हे कर्जा उतर जायेगा , बीमार हे बीमारी भाग जाएगी , घर में बेटे -बेटी की समस्या भाग जाएगी , और घर एसा हो जायेगा चाहे राम राज देश में हो या न हो पर घर घर में राम राज्य हो जायेगा .
Watch video on YouTube : https://www.youtube.com/watch?v=wRdGuOAvfQU
सफलता के ७ सूत्र :
१. आत्मविश्वास : देखा जाता हे की लोग किसी भी कार्य करने में सक्षम होते हे परंतु स्वयं की क्षमता पर विश्वास नहीं होता ,ये मेरी केपेसिटी हे , ये मेरी क्षमता हे , खुद की क्षमता पर विश्वास नहीं होता इसलिए असफल हो जाते हे . ये काम होकर रहेगा ॐ ॐ दो पांच मिनिट ओमकार का गुंजन करो आत्मबल बढाओ , आत्मविश्वास की कमी से व्यक्ति को असफलता मिलती हे . उदा: एक विद्याथी के परीक्षा में रेंक न आने पुछा गया आप हर बार रेंक लाते इसबार क्यों नहीं आया . विद्यार्थी ने कहा "इसबार में पढ़ते समय पढाई से ज्यादा परिणाम का ज्यादा चिंतन करता था ".
२. पुरुषार्थ : भाग्य के व्यापक आकर को देखकर सामान्य लोगो की बात ही क्या कहे कभी कभी विद और वरिष्ठ जन भी भाग्य की बलसाली होने की गवाही देने लग जाते हे ,'भाग्य बड़ा बलवान हे ', 'भाग्य में होगा तो पढाई करेगे ','नसीब होगा तो पैसे मिलेगे ', वगेरे .. बुध्धि के सभी तर्क, ज्योतिष की सभी गणनाए , ग्रह का समूचा दलबल भाग्य के पक्ष में खड़ा दिखाई देता हे . नशीब होगा सो होगा क्या करे भाई भाग्य ही ऐसा हे .
नितिशास्त्र में आया हे " उधोगे नास्ति दरिद्रं " पुरुषार्थी उद्यमी कभी दरिद्र नहीं होता . अत्मवेता वेता महापुरुष वो भाग्य की शक्ति को एक सीमा तक ही स्वीकारते क्योकि वे महापुरुष जानते हे की पुरुषार्थ आत्म की चेतना शक्ति हे जबकि भाग्य तो कर्मो का समुदाय हे . पुरुषार्थ का एक पल भी कई जन्म की दुर्बलताओ पर भरी पड़ता हे . " फोलादी हे बांहे हम चाहे तो खड़ी कर सकते हे चट्टानी राहे " , भाग्य को अपना इचानुवर्ती बनावो भाग्य के भरोशे आलसी मत बनो .
३. स्वयं की तुलना दुसरो से मत करो : प्रकृति ने सबको एक जैसा नहीं बनाया , हम सबका एक जैसा चहरा हे क्या ?, स्वभाव एक जैसा हे क्या ?, विचार एक जैसे हे क्या ?, .. इसने इतना कमाया ... ये मेरे साथ ही पढता था ये कितना धनवान हो गया और में तो अभीतक कुश भी नहीं कमाया . अपनी तुलना कभी भी दुशरो से मत करो जब आदमी अपनी तुलना दुशरो से करता हे तो इर्षा होती हे जो की विकार हे , जब भी आप अपनी तुलना दुशरो से करोगे इर्षा होगी ही , और इर्षा से हमारा कीमती समय कीमती उर्जा वो चिंता चिंता में नष्ट हो जायेगा . जो शक्ति जो समय किसी अच्छे काम में लगाकर सफलता मिल सकती थी , पर व्यर्थ के चिंता में समय भी चला गया और शक्ति भी चली गई . इशलिये खूब सचेत रहो इर्षा आंतरिक कमजोरी हे .
४. मन की एकाग्रता : मन की एकाग्रता हमें लक्ष प्राप्ति के लिए आबोध करती हे , अपने मन इन्द्रियों की एकाग्रता के धन से संपन्न रहो और उसमे वाणी का मौन बहुत मदद करेगा , मन की एकाग्रता दुर्गम कार्य को सुगम कर देता हे .
५ . उचा लक्ष : आप देखो कई बच्चे कोई इंजिनियर बनना चाहता हे , तो कोई डॉक्टर , वकील , बिज़नेशमेन बनना चाहता हे पर ध्यान रखे ये लक्ष उचा तो हे पर सोचने की बात ये हे की क्या ये लक्ष स्थिर हे . हम उसपे अडिग हे .
६. इश्वर और गुरु पर अटल भरोषा : माना की आपने पुरुषार्थ किया , आत्मविश्वास हे , स्वयं की तुलना दुशरो से नहीं करते , नाम एकाग्र भी हे और लक्ष भी उचा हे , चलो मन लो की सफलता के पांच सूत्र आपके पाश हे पर ये छठा गुरु व इश्वर पर अटल भरोषा न आया तो सभी प्रयत्न विफल होगे . और विफलता आने के बाद भी गुरु व इश्वर पर भरोषा कायम रहा तो सफलता आपके पीछे पीछे न आये तो आपका जूता मेरा सर .
७ . सबकी सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाकर हंमेशा संतोषी रहना : मेरे द्वारा दुसरो की सेवा होगी , सेवा का उतकृस्ठ लक्ष रखोगे , जीवन के उचे मूल्य रखोगे , तो हमारे जीवन की गति को सही दिशा मिल जाएगी , वास्तविक सफलता मिल जाएगी , कर्जा हे कर्जा उतर जायेगा , बीमार हे बीमारी भाग जाएगी , घर में बेटे -बेटी की समस्या भाग जाएगी , और घर एसा हो जायेगा चाहे राम राज देश में हो या न हो पर घर घर में राम राज्य हो जायेगा .
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