पश्चिमी शिक्षा किस तरह गुलाम बनाती हे , अवस्य पढ़े ..
दोस्तों आज में लिखने जा रहा हु की यूरोपीय शिक्षा हमें किस तरह से उसके मानसिक गुलाम बनाते हे . हम सभी जानते हे की हमारे यहाँ आंग्रेजो ने काफी साल राज किया और उनके एक फल स्वरूप हमें अंग्रेजी सिक्षा व्यवस्था सोड़कर चले गए पर क्या आप जानते हो की आज वही शिक्षा व्यवस्था हमें अंग्रेजो के तोर- तरीके , कल्चर , और विचारो के गुलाम बनाते हे . इश बातको अच्छी तरह समजने के लिए में आप को उन वियतनामी के बारे में बताता हु जिससे आप अच्छी तरह से समज जावोगे की अंग्रेजोने शिक्षा देने का षड्यंत्र क्यों किया था .
वियतमान जो भारत की तरह एक ज़माने में फ्रांसीसियो का गुलाम था , यहाँ के किशानो के गुलामो की तरह मजदूरी करवाकर कीमती चीजे व चावल का एक्सपोर्ट अपने देश ( यूरोप ) में करते थे . फ़्रांसिसी उपनिवेशवाद सिर्फ आर्थिक शोषण पर केन्द्रित नहीं था . इसके पीछे ' सभ्य ' बनाने का कुविचार भी काम कर रहा था . जिस तरह भारत में अंग्रेज दावा करते थे उसी तरह फ्रांसीसियो का दावा था की वे वियतनाम के लोगो को आधुनिक सभ्यता से परिचित करा रहे हे . उनका विस्वाश था की उरोप में सबसे विकसित सभ्यता कायम हो चुकी हे . इसलिए वे मानते थे की उपनिवेसो में आधुनिक विचारो का प्रसार करना युरोपिओ का ही दायित्व हे और इस दायित्व की पूर्ति करने के लिए अगर उन्हें स्थानीय संस्कृतियो , धर्मो व परंपराओ को भी नष्ट करना पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं हे . वैसे भी , यूरोपीय शासक इन संस्कृतियो धर्मो और परंपराओ को पुराना व बेकार मानते थे . उन्हें लगता था की ये चीजे आधुनिक विकाश को रोकती हे .
'देशी' जनता को सभ्य बनाने के लिए सिक्षा को काफी अहम् माना जाता था .लेकिन वियतनाम में सिक्षा का प्रसार करने से पहले फ्रांसीसियो को एक और दुविधा हल करनी थी दुविधा इश बात को लेकर थी की वियतनामियो को किस हद तक या कितनी शिक्षा दी जाये ? फ्रांसीसियो को शिक्षित कामगारों की जरुरत तो थी लेकिन गुलामो को पढ़ाने - लिखाने से समस्या भी पैदा हो सकती थी . सिक्षा प्राप्त करने के बाद वियतनाम के लोग ओपनिवेसिक शासन पर सवाल भी उठा सकते थे . इतना ही नहीं वियतनाम में रहने वाले फ़्रांसिसी नागरिको (जिन्हें कोलों कहा जाता था) को तो यह भी भय था की स्थानीय लोगो में सिक्षा के प्रसार से कही उनके काम धंधे और नोक्रिया भी हाथ से न जाती रहे . इन लोगो में कोई शिक्षक , कोई दुकानदार तो कोई पुलिशवाला था . इसलिए ये लोग वियतनामियो को पूरी फ़्रांसिसी सिक्षा देने का विरोध करते थे .
शिक्षा की भाषा : शिक्षा के क्षेत्र में फ्रांसीसियो को एक और समस्या का सामना करना पड़ा . वियतनाम के धनि और अभिजात्य तबके के लोग चीनी संस्कृति से गहरे तोर पर प्रभावित थे . फ्रांसीसियो की सत्ता को मजबूत आधार प्रदान करने के लिए इस प्रभाव को समाप्त करना जरुरी था . फल स्वरूप पहले उन्होंने परपरागत शिक्षा व्यस्था को सुनियोजित ढंग से तहस - नहस किया और फिर वियतनामियो के लिए फ़्रांसिसी किस्म के स्कूल खोल दिए लेकिन यह कोई आशान काम नहीं था . अब तक समाज के खाते -पिते तबके लोग चीनी भासा का इस्तमाल करते थे . जिसे हटाना जरुरी था . लेकिन उसकी जगह लेने वाली भासा कोनसी कोनसी हो ? चीनी भाषा को हटाकर लोगो को वियतनामी भासा पढाई जाये या उन्हें फ़्रांसिसी भासा में शिक्षा दी जाये ?
इस सवाल पर लोगो के बिच दो मत थे . कुश निति -निर्माता मानते थे की फ़्रांसिसी भाषा को ही सिक्षा का माध्यम बनाया जाये उन्हें लगता था की फ़्रांसिसी भाषा सिखने से वियतनाम के लोग फ़्रांस की संस्कृति और सभ्यता में परिचित हो जायेगे . इस प्रकार " यूरोपीय फ़्रांस के साथ मजबूती से बंधे एक एशियाई फ़्रांस " की रचना करने में मदद मिलेगी . वियतनाम के शिक्षा प्राप्त लोग फ़्रांसिसी भावनाओ को व आदर्शो का सन्मान करने लगेगे , फ़्रांसिसी क्रांति की श्रेष्ठता के कायल हो जायेगे और फ्रांसीसियो के लिए लगन से काम करने लगेगे . बहुत सारे लोग इस बात के खिलाफ थे की पढाई के लिए केवल फ़्रांसिसी भासा को ही माध्यम बनाया जाये . उनका विचार था की अगर छोटी कक्षाओ में वियतनामी और बड़ी कक्षाओ में फ़्रांसिसी भासा में शिक्षा दी जाये तो ज्यादा बेहतर होगा . वे तो यहाँ तक चाहते थे की जो थोड़े से लोग फ़्रांसिसी सिख लेगे और फ़्रांस की संस्कृति को अपना लेगे . उन्हें फ़्रांस की नागरिकता भी प्रदान कर दी जाएगी .
लेकिन स्कूल में दाखला लेने की ताकत तो वियतनाम के धनि वर्ग के पास ही थी . यह देश की आबादी का एक बहुत सोटा हिस्सा था जो स्कूल में दाखिला ले पाते थे उनमेसे भी बहुत थोड़े से विद्यार्थी ही ऐसे होते थे जो सफलता पुर्वक स्कूल की पढाई पूरी कर पाते थे . दरअसल बहुत सारे बच्चो को तो आखरी साल की परीक्षा में जानबुज कर फ़ैल कर दिया जाता था . ताकि वे अच्छी नोकरी के लिए योग्यता प्राप्त न कर सके . आमतोर पर दो तिहाई विद्यार्थियो को इसी तरह फ़ैल कर दिया जाता था . १९२५ में १.७ करोड़ की आबादी में स्कूल की पढाई पूरी करने वालो की संख्या ४०० से भी काम थी .
स्कूल की किताबो में फ्रांसीसिओ का गुणगान किया जाता था और ओपनीवेशिक शासन को सही ठहराया जाता था . वियतनामियो को आदिम और पिछड़ा दर्शाया जाता था जो शारीरिक श्रम तो कर सकते हे लेकिन बोद्धिक कामो के लायक अनहि हे ; वे खेतो में काम तो कर सकते हे लेकिन अपना शासन खुद नहीं चला सकते ; वे ' माहिर नकलची ' तो हे पर उनमे रचनासिलता नहीं हे . स्कूल के बच्चो को पढाया जाता था की वियतनाम में केवल फ़्रांसिसी ही शांति कायम कर सकते हे : ' जब से वियतनाम में फ़्रांसिसी शासन की स्थापना हुई हे , वियतनामी किशान डाकुओ के भय से आज़ाद हो गए हे .... चारो तरफ अमन - चैन हे और किशान दील लगाकर काम कर सकते हे '.
आधुनिक दिखने की चाह : पश्चिमी ढंग की शिक्षा देने के लिए १९०७ में टोकिन फ्री स्कूल खोला गया था . इश शिक्षा में विज्ञान , और फ़्रांसिसी भाषा की कथाए भी सामिल थी ( जो सम को लगती थी और उनके लिए अलग से फिश ली जाती थी ) . इश स्कूल की नज़र में 'आधुनिक' के क्या मायने थे इससे उस समय की सोच को अच्छी तरह से समजा जा सकता हे . स्कूल की रे में , सिर्फ विज्ञान और पश्चिमी विचारो की सिक्षा प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं था : आधुनिक बनने के लिए वियतनामियो को पश्चिम के लोगो जैसा ही दिखाना भी पड़ेगा . इसलिए यह स्कूल अपने छात्रों को पश्चिमी शैलियो को अपनाने के लिए उकसाता था . और देर सबेर वियतनामी बच्चे पूर्ण सवरूप से फ्रांसीसियो के इशारे पर नाचने वाले गुलाम बन जाते थे .
वियतमान जो भारत की तरह एक ज़माने में फ्रांसीसियो का गुलाम था , यहाँ के किशानो के गुलामो की तरह मजदूरी करवाकर कीमती चीजे व चावल का एक्सपोर्ट अपने देश ( यूरोप ) में करते थे . फ़्रांसिसी उपनिवेशवाद सिर्फ आर्थिक शोषण पर केन्द्रित नहीं था . इसके पीछे ' सभ्य ' बनाने का कुविचार भी काम कर रहा था . जिस तरह भारत में अंग्रेज दावा करते थे उसी तरह फ्रांसीसियो का दावा था की वे वियतनाम के लोगो को आधुनिक सभ्यता से परिचित करा रहे हे . उनका विस्वाश था की उरोप में सबसे विकसित सभ्यता कायम हो चुकी हे . इसलिए वे मानते थे की उपनिवेसो में आधुनिक विचारो का प्रसार करना युरोपिओ का ही दायित्व हे और इस दायित्व की पूर्ति करने के लिए अगर उन्हें स्थानीय संस्कृतियो , धर्मो व परंपराओ को भी नष्ट करना पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं हे . वैसे भी , यूरोपीय शासक इन संस्कृतियो धर्मो और परंपराओ को पुराना व बेकार मानते थे . उन्हें लगता था की ये चीजे आधुनिक विकाश को रोकती हे .
'देशी' जनता को सभ्य बनाने के लिए सिक्षा को काफी अहम् माना जाता था .लेकिन वियतनाम में सिक्षा का प्रसार करने से पहले फ्रांसीसियो को एक और दुविधा हल करनी थी दुविधा इश बात को लेकर थी की वियतनामियो को किस हद तक या कितनी शिक्षा दी जाये ? फ्रांसीसियो को शिक्षित कामगारों की जरुरत तो थी लेकिन गुलामो को पढ़ाने - लिखाने से समस्या भी पैदा हो सकती थी . सिक्षा प्राप्त करने के बाद वियतनाम के लोग ओपनिवेसिक शासन पर सवाल भी उठा सकते थे . इतना ही नहीं वियतनाम में रहने वाले फ़्रांसिसी नागरिको (जिन्हें कोलों कहा जाता था) को तो यह भी भय था की स्थानीय लोगो में सिक्षा के प्रसार से कही उनके काम धंधे और नोक्रिया भी हाथ से न जाती रहे . इन लोगो में कोई शिक्षक , कोई दुकानदार तो कोई पुलिशवाला था . इसलिए ये लोग वियतनामियो को पूरी फ़्रांसिसी सिक्षा देने का विरोध करते थे .
शिक्षा की भाषा : शिक्षा के क्षेत्र में फ्रांसीसियो को एक और समस्या का सामना करना पड़ा . वियतनाम के धनि और अभिजात्य तबके के लोग चीनी संस्कृति से गहरे तोर पर प्रभावित थे . फ्रांसीसियो की सत्ता को मजबूत आधार प्रदान करने के लिए इस प्रभाव को समाप्त करना जरुरी था . फल स्वरूप पहले उन्होंने परपरागत शिक्षा व्यस्था को सुनियोजित ढंग से तहस - नहस किया और फिर वियतनामियो के लिए फ़्रांसिसी किस्म के स्कूल खोल दिए लेकिन यह कोई आशान काम नहीं था . अब तक समाज के खाते -पिते तबके लोग चीनी भासा का इस्तमाल करते थे . जिसे हटाना जरुरी था . लेकिन उसकी जगह लेने वाली भासा कोनसी कोनसी हो ? चीनी भाषा को हटाकर लोगो को वियतनामी भासा पढाई जाये या उन्हें फ़्रांसिसी भासा में शिक्षा दी जाये ?
इस सवाल पर लोगो के बिच दो मत थे . कुश निति -निर्माता मानते थे की फ़्रांसिसी भाषा को ही सिक्षा का माध्यम बनाया जाये उन्हें लगता था की फ़्रांसिसी भाषा सिखने से वियतनाम के लोग फ़्रांस की संस्कृति और सभ्यता में परिचित हो जायेगे . इस प्रकार " यूरोपीय फ़्रांस के साथ मजबूती से बंधे एक एशियाई फ़्रांस " की रचना करने में मदद मिलेगी . वियतनाम के शिक्षा प्राप्त लोग फ़्रांसिसी भावनाओ को व आदर्शो का सन्मान करने लगेगे , फ़्रांसिसी क्रांति की श्रेष्ठता के कायल हो जायेगे और फ्रांसीसियो के लिए लगन से काम करने लगेगे . बहुत सारे लोग इस बात के खिलाफ थे की पढाई के लिए केवल फ़्रांसिसी भासा को ही माध्यम बनाया जाये . उनका विचार था की अगर छोटी कक्षाओ में वियतनामी और बड़ी कक्षाओ में फ़्रांसिसी भासा में शिक्षा दी जाये तो ज्यादा बेहतर होगा . वे तो यहाँ तक चाहते थे की जो थोड़े से लोग फ़्रांसिसी सिख लेगे और फ़्रांस की संस्कृति को अपना लेगे . उन्हें फ़्रांस की नागरिकता भी प्रदान कर दी जाएगी .
लेकिन स्कूल में दाखला लेने की ताकत तो वियतनाम के धनि वर्ग के पास ही थी . यह देश की आबादी का एक बहुत सोटा हिस्सा था जो स्कूल में दाखिला ले पाते थे उनमेसे भी बहुत थोड़े से विद्यार्थी ही ऐसे होते थे जो सफलता पुर्वक स्कूल की पढाई पूरी कर पाते थे . दरअसल बहुत सारे बच्चो को तो आखरी साल की परीक्षा में जानबुज कर फ़ैल कर दिया जाता था . ताकि वे अच्छी नोकरी के लिए योग्यता प्राप्त न कर सके . आमतोर पर दो तिहाई विद्यार्थियो को इसी तरह फ़ैल कर दिया जाता था . १९२५ में १.७ करोड़ की आबादी में स्कूल की पढाई पूरी करने वालो की संख्या ४०० से भी काम थी .
स्कूल की किताबो में फ्रांसीसिओ का गुणगान किया जाता था और ओपनीवेशिक शासन को सही ठहराया जाता था . वियतनामियो को आदिम और पिछड़ा दर्शाया जाता था जो शारीरिक श्रम तो कर सकते हे लेकिन बोद्धिक कामो के लायक अनहि हे ; वे खेतो में काम तो कर सकते हे लेकिन अपना शासन खुद नहीं चला सकते ; वे ' माहिर नकलची ' तो हे पर उनमे रचनासिलता नहीं हे . स्कूल के बच्चो को पढाया जाता था की वियतनाम में केवल फ़्रांसिसी ही शांति कायम कर सकते हे : ' जब से वियतनाम में फ़्रांसिसी शासन की स्थापना हुई हे , वियतनामी किशान डाकुओ के भय से आज़ाद हो गए हे .... चारो तरफ अमन - चैन हे और किशान दील लगाकर काम कर सकते हे '.
आधुनिक दिखने की चाह : पश्चिमी ढंग की शिक्षा देने के लिए १९०७ में टोकिन फ्री स्कूल खोला गया था . इश शिक्षा में विज्ञान , और फ़्रांसिसी भाषा की कथाए भी सामिल थी ( जो सम को लगती थी और उनके लिए अलग से फिश ली जाती थी ) . इश स्कूल की नज़र में 'आधुनिक' के क्या मायने थे इससे उस समय की सोच को अच्छी तरह से समजा जा सकता हे . स्कूल की रे में , सिर्फ विज्ञान और पश्चिमी विचारो की सिक्षा प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं था : आधुनिक बनने के लिए वियतनामियो को पश्चिम के लोगो जैसा ही दिखाना भी पड़ेगा . इसलिए यह स्कूल अपने छात्रों को पश्चिमी शैलियो को अपनाने के लिए उकसाता था . और देर सबेर वियतनामी बच्चे पूर्ण सवरूप से फ्रांसीसियो के इशारे पर नाचने वाले गुलाम बन जाते थे .
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